चाय के बागानों से उपज़ी बेहतरीन चाय स्पिक्टेक्स इंटरनेशनल की पेशकश...

Sunday, October 30, 2011

चाय का इतिहास




बस चाय ही चाय


वैसे चाय का इतिहास पाँच हजार वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि चाय की शुरुआत चीन से हुई थी। चीन का सम्राट शैन नुंग एक बार गर्म पानी का प्याला पीते हुए अपने बगीचे में घूम रहा था कि अचानक तेज़ हवा से एक जंगली झाड़ी के कुछ पत्ते आकर उसके पानी में गिर गये। गर्म पानी में गिरते ही उसमें से एक अलग सी महक आने लगी और पानी का रंग भी बदल गया। शेन ने रोंमांचित हो एक घूँट भरी और खुशी से चिल्ला उठा, और तभी से चाय का जन्म हुआ।


कुछ प्रमाणिक तथ्यों से ये उजागर होता है कि सबसे पहले सन् 1610 में कुछ डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में एक समिति का गठन किया जिसमे चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की बात रखी गई। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए।


असम हमारे देश में चाय का सबसे बड़ा उत्‍पादक राज्‍य माना जाता है। इसके अतिरिक्त दार्जिलिंग, हिमालय की तराई, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु में भी चाय की पैदावार होती है। आसाम,गुवाहाटी आदि कई क्षेत्रों में हर साल नवम्बर के महिने में चाय उत्सव मनाया जाता है।

विश्व के अन्य देशों में जापान, श्रीलंका,केनिया,जावा, सुमात्रा, चीन, अफ्रीकाताईवान, इण्डोनेशिया इत्यादि भी चाय का उत्पादन करते हैं ।जापान में भी हर साल कुछ संगठनों द्वारा चाय समारोह मनाया जाता हैं।
भारत में सन 1953 में टी बोर्ड की स्थापना की गई। जिसने भारत में ही नही अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में भी चाय के उत्पादन को फ़ैलाया। टी बोर्ड ने लोगों को चाय की गुणवत्ता बताते हुए चाय के प्रति जागरुक किया।

Sunday, September 4, 2011

चाय... एक परिचय






हिमालय की पहाड़ियों के चारों तरफ़ ढालू जमीन से उतरतेहुए कोहरे की परत के बीच नन्ही-नन्ही कोमल पत्तियों से लिपटी ओस की बूँदो पर जब सूरज की पहली किरण पड़ती है,तो पत्तियों पर फ़ैली ओस की बूंदे चमक उठती है, उन्हे देख कर लगता है, मानो पहाड़ियों ने रत्न जड़ित हरी चुनरिया ओढ़ ली है। मन रोमांच से भर उठता है।
-- वाह! क्या बात है।
-यह कुछ और नही जनाब चाय है।
हाँ वही चाय जिसकी एक घूँट गले में उतरते ही अहसास होता है,एक सुहानी सुबह का। हाँ वही चाय जो दिन की शुरूआत कर देती है,पूरे जोश के साथ। वही चाय जो दिल और दिमाग दोनो को रखती है ताज़गी से भरपूर।

-आईये,जरा एक प्याली चाय हो जाये। अरे! चाय के लिये तकल्लुफ़ कैसा? बातों ही बातों में महफ़िल की शान कहें या दोस्ती का फ़रमान कहें, थकान मिटानी हो या दिल बहलाना हो, हर मर्ज की दवा बन बैठी है चाय।


कुछ तो चाय न पिलाने का ताना भी दे जाते हैं,-कितना कंजूस है, चाय तक नही पूछी। चाय का दस्तूर तो रिश्वतखोरों को भी मालूम है,वे भी कहते नजर आते हैं,--कुछ चाय-पानी हो जाता तो...। ऎसे ही सदियों से जिंदगी के हरेक पल में शामिल रही है चाय। लेकिन फ़िर सोचती हूँ,ऎसा क्या है इसमें? क्यों शामिल है यह हमारी जरूरतों में?
बड़े-बूढ़ों को कहते सुना था कि हनुमान जी जिस संजीवनी बूटी को लेकर आये थे वह कुछ और नही चाय ही थी जिसने लक्ष्मण की मूर्छा खत्म की थी। ये भ्रम है या सत्य परंतु सदियों से थकान मिटाने के नाम पर चाय का नाम ही आता है।